खुब खाऊँ भर पेट,
पेट कहें चुप बैठ... ।
नाक कहें आ रहा खाने का सेंट... ।
आँख कहे देख रहा हूँ खाने का कई सेट... ।
मुँह कहे कहीं हो ना जाए लेट... ।
जिव्हा कहें आ तुझें चख लू एक पर एक।
सब कहें मिलकर कहें,
देखों- देखों आ रहा खाने का प्लेट... ।
उस दिन मैं....... तालाब के किनारे खड़ा, तालाब में हो रही लहर की हल्की धारा... वह धारा नहीं मेरे भीतर से उठते प्रश्न क्या कर रहा हूं मैं ...
बहुत खूब
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