गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

 काँच और आईना

साहित्य समाज का ही चित्रवृति होता है। जो काँच की तरह होता है।

आप लोगों को लग रहा होगा की काँच और आईना तो एक ही होता है फिर क्यों साहित्य समाज का काँच है आईना नहीं। आइए समझते है।

काँच से ही आईना बनाया जाता। काँच और आईना में सिर्फ फर्क इतना होता है कि आईना में एक तरफ परत लगा दी जाती है जिससे उसमें सिर्फ देखने वाला का ही अक्स दिखाई देता है और काँच में आर - पार दिखाई देता है। इसे ओर अच्छी तरह साहित्य के भाषा में समझने का प्रयास करते है। दर्शनशस्त्रियों का कहना है कि संसार में दो ही तरह के दृश्य होते है आदर्श और यथार्थ। आदर्श यानी जो हम कल्पना या जैसा हम देखना या समझना चाहते है। यथार्थ यानी जो सच्चाई है या जो हो रहा है वही दिखातीं है। आदर्श यानी आईना, यथार्थ यानी काँच। इसलिए साहित्य को आईने में कैद नहीं रखा जा सकता है वह तो काँच की तरह होता है जो अतीत से वर्तमान, वर्तमान से भविष्य को हमारे सामने ला देती है। हिंदी साहित्य में ही ऐसे बहुत सारे रचनाकार है जिनकी अपने समय लिखी रचना आज भी प्रासंगिक है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

उस दिन मैं

 उस दिन मैं.......  तालाब के किनारे खड़ा,  तालाब में हो रही लहर की हल्की धारा...  वह धारा नहीं मेरे भीतर से उठते प्रश्न क्या कर रहा हूं मैं ...