अपनी यात्रा
आज मुझे गया के लिए प्रस्थान करना है, क्योंकि मैं पुराने शिक्षकों और मित्रों से मिलने का अवसर चूकना नहीं चाहता। किसी यात्रा पर निकलने से पहले उत्सुकता महसूस होना आम बात है इसको बाद में समझेंगे। यह यात्रा मुझे दरभंगा से गया तक ले जाती है, जहां 'दरभंगा' अपने तालाबों के लिए प्रसिद्ध है, वहीं 'गया' ज्ञान की भूमि के रूप में जाना जाता है। यह यात्रा मेरे लिए महत्व रखती है क्योंकि 'गया' वह स्थान है जहां मैंने अपने आंतरिक गुणों की खोज की और उन्हें स्वीकार किया, जिसके कारण मैं आज यहां तक पहुंच पाया हूँ।तमाम बातचीत के बीच, आइए यात्रा पर फिर से लौटे। हर दिन की तरह, मैं यूनिवर्सिटी के लिए निकल पड़ा, रास्ते में मैंने दाल पूरी और छोले नाश्ता किया। आज विशेष रूप से खुशी का दिन था और कक्षा के दौरान भी मुझे बोरियत महसूस नहीं हुई।कक्षा के बाद, हम कुछ लड़को ने चाय, समोमा और जलेबी का पार्टी किए, और उस पल को अपने फोन पर कैद कर लिए। फिर हम अपने-अपने रास्ते चले दिये। अक्सर कहा जाता है कि ख़ुशी छोटी-छोटी चीज़ों में पाई जा सकती है। जैसे ही हमारे फोन के वाट्स ग्रुप में संदेश आने शुरू हुए, हमने विभिन्न विषयों और हमारे द्वारा की गई पार्टी पर चर्चा की।लड़कियों के लिए यह समझना मुश्किल था कि यह पार्टी किस मेज़बान व्यक्ति की ओर से यह दावत थी। चर्चा लगभग एक घंटे पन्द्रह मिनट तक चली और फिर सभी शांत हो गये।उस समय तक मैं मुजफ्फरपुर आ चुका था। मुजफ्फरपुर से पटना की दूरी लगभग 60 किमी यानी डेढ़ घंटा की थी। मैं शाम करीब साढ़े सात बजे पटना पहुंचा और अपने एक दोस्त के यहां रुका। जो कई सालों से वहां रह रहा था। हमने वहां रात बिताई और सुबह हम दोनों एक साथ 'गया' के लिए निकले, स्टेशन पर पहुंचते ही वहाँ एक ओर दोस्त से मुलाकात हुई ऐसे रात को ही हमें फोन कर के बता दिया था की मैं आ रहा हूँ। इस दोस्त को कह सकते है कि हंसी का संक्रामक है और वह हमेशा अपने और दूसरों को हंसाने की कोशिश करता है। मैं इसी से हंसी के शक्ति को जान सका हूँ, इसलिए मैं हमेशा हंसने पर विश्वास रखता हूँ, क्योंकि कहा जाता है कि हंसी हर समस्या का समाधान है। हम तीनों अपने पिछले अनुभवों को ताज़ा करने के लिए यात्रा पर निकल पड़े, पटना से गया जाने वाली ट्रेन में चढ़े। विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हुए, कुछ खाते पीते हम 'गया' पहुंचे, लेकिन ट्रेन प्लेटफार्म से काफी दूर रुक गयी। हमलोगों को देरी हो रही थी इसलिए, हमने पैदल चलने का फैसला किया और ट्रेन की लंबाई से लगभग दोगुनी दूरी तय की। भर पेट खाना न खाने के बावजूद, हम उत्सुकता से सभी से मिलने के लिए प्लेटफॉर्म की ओर बढ़े जा रहे थे। वहां से रिक्शा लिया और आखिरकार कॉलेज पहुंच गया। अपने गंतव्य पर पहुंचने के बाद, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं समय में पीछे यात्रा कर चुका हूं। हम सबके साथ फिर से मिले और विभिन्न बातचीत में लगे रहे। हम सबको साथ मिले हुए लगभग एक साल हो गया था। सबने अपना कालेज काम पूरा कर किया और हम सब एक ही दोस्त के रूम में रुके। हमने रात में डिनर पार्टी का आनंद लिया और इधर - उधर के चर्चाओं में व्यस्त रहे। सब करीब रात 01.00 बजे सोये सुबह साढ़े पांच बजे पितृपक्ष घुमने का निर्णय किये और अलार्म मैं लगा दिया। साढ़े पांच बजे अलार्म बजा तब सब गहरी नींद में थे तो मैं भी अलार्म बंद कर सो गया। सुबह 09 बजे उठे और 11 बजे हम विश्वविद्यालय के लिए निकले। आश्चर्य की बात यह थी कि वहां हमारे कार्य सहजता से पूरे हो गए, मानो भाग्य हमारे साथ था। एक बार जब विश्वविद्यालय का काम समाप्त हो गया, तो हमने एक-एक करके अलविदा कहना शुरू कर दिया और सभी लोग अपनी-अपनी भविष्य की ओर अग्रसर हो गए। हालाँकि, मैं एक ओर रात रूकने का फैसला किया क्योंकि फिर कब ऐसा मौका मिले। शाम को वहाँ जो दोस्त बचें थे उन लोगों के साथ पितृ पक्ष मेले में जाने की योजना मैंने बनाई और शाम होते ही घुमने निकल गये। यह मेला पिंडदान करने के लिए जाना जाता है, जो मृतक की शांति के लिए एक अनुष्ठान है, हालांकि मैं इसके विवरण में नहीं जाऊंगा। वर्तमान वातावरण अनुकूल नहीं है। अगली सुबह यह मुसाफिर भी अपने सफ़र पर लौट आया।
आपका यात्रा वृतांत पढ़कर अच्छा लगा! ऐसे ही लिखते रहे और पोस्ट करते रहे!
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